एक मैं और एक मेरी
ज़िंदगी का रंग है
तुम ये मानो या न मानो
दिल नही ये संग है
क्या बताऊं क्या दिखाऊं
एक अजब ये ढंग है
देख कर अपना ही दामन
ये हो रहा मन दंग है
चाहना कहता हूं कुछ जब
कह और कुछ जाता हूं तब
देखते ही देखते काया पलट जाती है कब
और दुनिया से बिछुड़ने की घड़ी आती है तब
अभय शर्मा
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