हिफाजत
गुरुवार, २५ अप्रैल २०१९
याद आ रहा वो पल बारबार
करता रहा अंतर्मन पर वार
उसका कहना और मुकरना
छोड़ देती तू एक और बहाना।
जब शाम ढलने को आती
तेरी याद सामने आ जाता
मंदिर में जब बजती घंटी और होती प्रार्थना
तेरा अंदर ही अंदर हो जाता सामना।
नहीं मालुम मुझे प्यार का अंजाम
मेतो पीता रहा जाम पर जाम
अब तो हो गई है बात आम
लगता मुझे अब हो कजाएगा काम तमाम।
किरभी मुझे है भरोसा
जब तूने मुझे प्यार से परोसा
बस में सोता रहा याद करते करते
ना किया गीला बात का सोते सोते।
प्यार को समजा मैंने इबादत
नहीं ली प्यार करने से पहले कोई इजाजत
इस से बानी रही हम दोनों की इज्जत
हमने भी ठानी थी रखने की हिफाजत।
हसमुख मेहता
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In love, taking care is definitely good. This poem is very brilliantly penned with care and love.