मेरी राष्ट्रभाषा -हिंदी
बुधवार, १५ सितम्बर २०२१
सीना गर्व से तन जाता
जब में अपनी बात कह पाता
मातृभाषा में बात करना सबकी अभिलाषा
पर अनोखी बात है महसूस करना राष्ट्रभाषा।
राष्ट्र को जोड़नेवाली
सबकी बोली
एक बोली सब ने मानी
लगने लगी स्वमानी
हम सब राष्ट्र के बाल
लाल रंग के गुलाब के फूल
महकते और महकाते
हवा में खुशबु लाते मुस्कुराते।
राष्ट्र का निर्माण और भाषा
समजे और बोले सहसा
जोड़े एक दूसरे के दिल
रहे एक साथ मिलझुल।
विविधता में एकता
संस्कृति से भी हो समरसता
चेहरा सदा रहे गर्व से ऊंचा और हसता
मानो बंधे हो एक सूत्र से जैसे हो गुलदस्ता।
भाषा सिखाती है मृदुता
इसका दुसरा नाम है वात्सल्यता
करे अपनों से आत्मीयता
सोहार्दपूर्ण वातावरण की रचयिता।
आपकी भाषा आपकी परंपरा
बात में हो नरमी और हसत्ता चेहरा
ना हो उसपर किसीका पेहरा
आम आदमी का आभूषण सुनहरा।
डॉ. हसनख मेहता
साहित्यिकी
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