धरती का औसत तापमान बढ़ रहा है
ग्लेशियर पिघल रहे हैं
कहीं पे त्रस्त लोग हैं निम्न तापमान से
पस्त कहीं भीषण गरमी से
महासागरों का जलस्तर बढ़ रहा है
खतरे में हैं जलचर
समुद्र के नीचे कोरल व वनस्पति
पेड़ कटते जा रहे हैं
धरती पर छाये वन घटते जा रहे हैं
पशु पक्षी प्रजातियाँ
बहुत तेजी से विलुप्त होती जा रहीं हैं
पर्यावरण का संतुलन
आज दसियों साल से बिगड़ता ही जा रहा
मनुष्य यदि संभल सके
प्रकृति इसे आज माफ़ कर भी सकती है
मगर जो देर हो गयी
तो प्रकृति के नाश में मनुष्य का भी नाश है.
ENGLISHIZE THIS PLEASE MY MOM'S SMILES HAS RETURNED TO MY BEST POSITION NO ONE ALL YOUR GOOD WISHES RM ji
Thanks for your kind visit and suggestion. I hope to post its English version shortly.
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पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। दोनों ध्रुवों में बर्फ पिघल रही है। इसलिए, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। यह बहुत खतरनाक है। इससे विनाश हो सकता है। प्रिय कवि, आपने अद्भुत कविता लिखी है। इससे जागरूकता आ सकती है। इस कविता को साझा करने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं। पूरे दस अंक देते हुए मैं आपको सम्मानित करता हूं।
उक्त कविता की इतनी अच्छी समीक्षा करने और इस विषय पर आपके विचारों ने भी पर्यावरण असंतुलन की समस्या की गंभीरता को उजागर किया है. आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद, मित्र.