इतिहास कहे कुछ या न सही
ये दुनिया वाले कह देंगें
जिस पार अगर मधु है तुम हो
उस पार का आलम क्या होगा
यह बात किसी से न कहना
दुनिया तुम से तुम दुनिया से
इंसानों की इस बस्ती में
क्या गजब तुम्हारी है हस्ती
कोई मान भी ले कोई ना माने
दिन प्रतिदिन के सपने अपने
टूटें बिखरें फिर से संवरें
तुम स्वप्न नही कोई क्या जाने
धरती के तुम भी हो वासी
है हवा तुम्हें भी नम करती
उस मिट्टी का है कर्ज़ हमें
अमिताभ जहां थे तुम जन्मे
एक तरफ है बाकी दुनिया
एक तरफ अमिताभ खड़ा
लगा है मेला लग तमाशा
कोई छोटा है न कोई बड़ा
देख रही है मधुर चांदनी
मधु है चारों तरफ भरा
आंखें देख रहीं है सपना
चल झूम नाच आज जरा
अभय शर्मा,21/29 जुलाई 2008
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