झंडा ऊंचा Jhanda Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

झंडा ऊंचा Jhanda

झंडा ऊंचा

Monday, January 1,2018
8: 14 AM

झंडा ऊंचा

तुम सब गुनगुनाओ
नया साल मनाओ
देशवाशीयो को बताओ
उसकी महानता के गुण गाओ।

इस धरती पर किसीके नापाक पाँव ना पड पाए
ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाय
हमारी शालीनता को कमजोरी ना समझे
बल के घमंड पर हमसे ना उलझे।

हम सब भारत माँके लाडले
वतन पर मर मिटने वाले दुलारे
कभी आंच नहीं आने देंगे
हमारा सर झूकने नहीं देंगे।

देश ही शान
देश ही वतन
करेंगे हम उसका जतन
यही रहेगी हमारी लगन।

मिटटी के हम लाल
हो जाएंगे कुरबान
यही है हमारी आन, बान और शान
मिल के करेंगे गुणगान।

देश को नहीं बटने देंगे
करारा और जबरदस्त मुकाबला करेंगे
हर देशवासी ये समझे
जातिवाद, प्रदेश वाद में कभी ना उलझे।

गरीब को अपमानित ना करे
किसानो को आत्महत्या ना करने दे
जवानो की आहूती नकार ना जाए
देश की सुरक्षा खतरे में ना पड जाए

गफलत में ना रहे देशवासी
झगड़े मिटा दे आपसी
एक है तो एक बकर रहे '
झंडा ऊंचा और सीना तानकर कहे।

झंडा ऊंचा Jhanda
Sunday, December 31, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 31 December 2017

गफलत में ना रहे देशवासी झगड़े मिटा दे आपसी एक है तो एक बकर रहे ' झंडा ऊंचा और सीना तानकर कहे।

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