जीवन का अंदाज.. Jivankaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जीवन का अंदाज.. Jivankaa

जीवन का अंदाज
गुरूवार, ३ जनवरी२०१९

कहा ना सूना मैंने उसकी बात को
पर बाद में ना सो सका रात को
मनविचलित रहा और खोया खयालो में
धीरे धीरे डूबता गया सवालों के घेरे में।

मन में मेरे लालसा बनी रही
धनवान होने की रूची भी होती रही
पर मालूम न था यह सब कैसे होगा?
"अपने ही घर का मालिक' मैं कैसे बनूंगा?

जैसी जैसे ख़याल आते गए
मेरे मन को भी धीरे धीरे लुभाते गए
फिर तो जैसी प्यास बढ़ती ही गई
मेरी अंदरूनी इच्छा आग की तरह प्रज्जवलित हो गई।

"जो अपने पास है उस से ही रहो "
जो भी मिला है उसे प्रभु का उपहार कहो
लोगों को दो समय का अनाज नही मिल रहा
कम से कम हम को खाना तो नसीब हो रहा।

अचानक से मेरे मन में सुध आई
उसकी हर बात दिल को छू गई
मेरा भी दिल फालतू चीजों से हटने लगा
जीवन के सही अंदाज को समज ने लगा।

हसमुख मेहता

जीवन का अंदाज.. Jivankaa
Thursday, January 3, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 03 January 2019

अचानक से मेरे मन में सुध आई उसकी हर बात दिल को छू गई मेरा भी दिल फालतू चीजों से हटने लगा जीवन के सही अंदाज को समज ने लगा। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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