यदि कर पाता कुछ गुण बखान
कह पाता कुछ देकर सम्मान
बच्चन, हे मेरे कवि प्रधान
क्या कलमवीर थे तुम महान
शब्दों में शब्द नही मिलते
है भाव मेरे भी अधोखिले
विकसित हो होकर ध्यान मग्न
कण कण मेरा तुमको अर्पण
मधुशाला के रचियता को
है अभय कर रहा आज नमन
इस जग मे कवि कितने आये
कितने आकर फिर चले गये
बच्चन की बात निराली है
कविता उनकी मतवाली है
नीड़ का निर्मांण फिर पढ़
बसेरे से दूर था मैने पढ़ा
क्या भूलूं क्या याद करूं
पढ़ा दशद्वार से सोपान तक
इन चार खंड में यहां वहां
था गद्य तुम्हारा बसा रचा
नही कवि कि थी कोई कल्पना
थी सत्य की यह अनुपम रचना
पढ़ा तुम्हारा लिखा जगत ने
यह बच्चन की अद्भुत साधना
पढ़कर मन भावुक हो उठता
फिर भावों में था खो जाता
यह संघर्ष तुम्हारे जीवन का
है पथ दर्शाता मानव का
हे कवि महान शत-शत वंदन
अमृत भी करता अभिनंदन
अभय भारती(य) ,23 दिसंबर 2008 07.18 (प्रातः)
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