क्षमा भी दिल से...Kshma Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

क्षमा भी दिल से...Kshma

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क्षमा भी दिल से
Friday, April 19,2019
11: 00 AM

मे तेरी दुनिया में आके अटक गया
इसी भूलभुलावे में कहीं भटक गया
न जान पाया असली मिजाज को
कहीं भी इलाज ना करा पाया।

कितने मिले दरवेश
अलग अलग थे उनके भेश
बस मेरे दिमाग में ना थीकोई झलक
में देखता रहा सबसे अपलक।

तू तो था सब जगह
मैंने भी रखा था आग्रह
तुझे किसी रूप में देख पाऊं
अपने आपको मना पाऊं।

तुने फैलाया प्रेम का पैगाम
पर हमने ही नहीं दिया कोई अंजाम
अंधे बनकर बन्दों को मारते रहे
बस तेरा ही नाम देकर बुरा काम करते रहे।

दे दो ना एक गुण प्रेम के सन्देश का
हो जाएगी पूर्ति मेरे अंदेश की
रहेंगे हम सब भाईचारे से
आप भी आ जाना हमारे एक पुकारे से।

हम करते रहे है गलती
पर दिल से कभी ना निकलती
बार बार ये दुआ भी मांगी जाती
आप ही हो मददगार, क्षमा भी दिल से कही जाती।

हसमुख मेहता

क्षमा भी दिल से...Kshma
Friday, April 19, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 19 April 2019

हम करते रहे है गलती पर दिल से कभी ना निकलती बार बार ये दुआ भी मांगी जाती आप ही हो मददगार, क्षमा भी दिल से कही जाती। हसमुख मेहता Hasmukh Amathalal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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