Lakir ke Fakir - लकीर के फकीर Poem by Abhaya Sharma

Lakir ke Fakir - लकीर के फकीर

रात के तम को चलो हम चीर दें
इस जगत को एक नया हम पीर दें
भाईचारे-शांति का पावन अनोखा तीर दें
चल सके इस विश्व में योद्धा नया एक वीर दें
मानविकता को पहन फिर, मानवों को धीर दें
शत्रुता को जीत रण में जग को नये हम छीर दें
मानवों को मानवों के मूल्य से जो जोड़ दे वो हीर दें
इस देश को उस देश को सब देश को कर एक दे वो मीर दें
जगमगाये लहलहाये आज इस धरती को चलके नीर दें
आओ इनको सूर दे रहीम दे या आज फिर कबीर दें
बांध कर जो रख सके हम आज वो फकीर दें
ज़िंदगी ज़िंदादिली ज़िदा इसे तस्वीर दें
बंदगी बंदो से हो ऎसी नई तकदीर दें
आज फिर जग को नई जागीर दें
विष को अमृत की नई तासीर दें

रात के तम को चलो हम चीर दें
इस जगत को एक नया हम पीर दें ।


अभय शर्मा,2/3 फरवरी 2010 01.30 घंटे

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The poet has raised hopes of finding someone who could raise the living beings in the world to unite them together..
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Bijnor, UP, India
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