सहन कर कर वो,
माँ अब थक चुकी
सीना चीर वो रो उठी।
आस लगाए, वे
उसकी कुछ मदद करे
पाला जिसे अपनी गोद में
गोद यूँ उसकी छली ली न करे।
बेटे उसके कट मर गए
खोखला, कमजोर छोड़ गए।
अब उसे पाताल पहुँचाना चाह रहे
देख इतना विनाश उसका,
मोह भंग अत्यंत हो रहे।
न बचे वो धरती हरी,
न बचे वो घर निवास
ला विकास ऐसा प्रचंड, क्या होगा?
मानव की मति भ्रष्ट हो गयी,
अब क्या क्या न हो।
समय अत्यंत बहुत दिया
'कर ढंग अच्छे', उसने खुभ कहा
चरण सीम, रोष करा उसे
देख परीणाम ऐसे वे यूँ,
अब खुद ही शर्मा उठे।
अपनी मती से उनका ये हाल हुआ
कर इंसानियत ख़त्म, खुद की,
अब जीना दुश्वार हुआ।
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