खाना, सोना, बैठना है।
ये लोगों का कहना है
घर की शान्ति बनाओगी
अगर तुम बस 4 दिन
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जन्मे थें वे, पौष की 12 को।
जन्मे थें वे, कुछ हटके करने को।
न्याय निष्पक्ष मिले कामना थी उनकी
दर्जा औरत का, नीची जातों को
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सहन कर कर वो,
माँ अब थक चुकी
सीना चीर वो रो उठी।
आस लगाए, वे
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गुमशुदगी मे बंदगी उसने करी।
नाराज़गी उसकी बेदर्द थी
बेहूदगी में उसकी सादगी थी।
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है अंतिम राग गाना कब
अंतिम मोल चुकाना अब?
क्या अंतिम असल अंत होगा
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वस्त्रधारी को वस्त्रहीन करता
बेहया भाव, वो,
नग्न होने तक लिखता है
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अपनी भाषा का दर्जा ऊँचा चाहते हैं
लालसा में अपनी, मारते मरते हैं
विविधत लोगों का मन विभाजित करते हैं
अपनी संतुष्टि हेतु क्या-क्या नहीं कर देते हैं।
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आदमी जो मेरा बाप बनता हैं,
वो क्यों मेरी माँ को गलीयाता हैं।
वो जो प्यार जताने वाले बनते हैं,
वे क्यों अकेले में हैवान बन जाते हैं।
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