lucy Bisht

lucy Bisht Poems

खाना, सोना, बैठना है।
ये लोगों का कहना है
घर की शान्ति बनाओगी
अगर तुम बस 4 दिन
...

डिप्रेशन और एंग्जायटी
को हमारी जनरेशन के
चोंचले समझते हैं।
...

जन्मे थें वे, पौष की 12 को।
जन्मे थें वे, कुछ हटके करने को।
न्याय निष्पक्ष मिले कामना थी उनकी
दर्जा औरत का, नीची जातों को
...

सहन कर कर वो,
माँ अब थक चुकी
सीना चीर वो रो उठी।
आस लगाए, वे
...

गुमशुदगी मे बंदगी उसने करी।
नाराज़गी उसकी बेदर्द थी
बेहूदगी में उसकी सादगी थी।
...

है अंतिम राग गाना कब
अंतिम मोल चुकाना अब?

क्या अंतिम असल अंत होगा
...

वस्त्रधारी को वस्त्रहीन करता
बेहया भाव, वो,
नग्न होने तक लिखता है
...

अपनी भाषा का दर्जा ऊँचा चाहते हैं
लालसा में अपनी, मारते मरते हैं
विविधत लोगों का मन विभाजित करते हैं
अपनी संतुष्टि हेतु क्या-क्या नहीं कर देते हैं।
...

आदमी जो मेरा बाप बनता हैं,
वो क्यों मेरी माँ को गलीयाता हैं।
वो जो प्यार जताने वाले बनते हैं,
वे क्यों अकेले में हैवान बन जाते हैं।
...

वो थे वहाँ पे, जहाँ थे हम
थे वे बिखरे पड़े, बने के लिए दुनिया की नयी बात।
थी शायद हमसे उन्हें एक आश
करे हम उनकी मदद हाल फिल हाल
...

तो क्या हुआ
नहीं चुना है, पांडवों और कौरवों में
चुनना है, कौरवों की भीड़ में
नहीं चुना है राम और रावण में
...

आज़ादी को चला रहे
नया रूप है बना रहे
कट्टरता से घिरे हुए
लकीरों से बटे हुए
...

बिखरती हुं मैं
अपने रंगों की धारा में
धारा मेरे अश्रुओं की होती
और रंगों में मेरे भाव बेहते
...

I held myself too tight.
To be bold enough to fight,
Within me and with my outside.
I know
...

The Best Poem Of lucy Bisht

अलग

खाना, सोना, बैठना है।
ये लोगों का कहना है
घर की शान्ति बनाओगी
अगर तुम बस 4 दिन
अलग रह जाओगी
किसी को न बताना ये
तुमको बस छुपाना ये
सवाल पूछौ तो डाट देगें
जवाब के नाम पर
दुनिया की रीत है
ये समझा देगें
बस मंदिर, रसोई
मे न जाना है
पापा को तो
बिल्कुल नही बताना ये
बस 4 दिन
और 4 दिन
की ही तो बात है

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