फर्द Poem by lucy Bisht

फर्द

गुमशुदगी मे बंदगी उसने करी।
नाराज़गी उसकी बेदर्द थी
बेहूदगी में उसकी सादगी थी।

दहशतगर्दो ने भंग करा
बेरंग हर एक अंग करा।
मेहरबानी न जताई गई
दादागिरी बस चलाई गई ।

ताज़गी मिली अवारगी मे
बादगर्द में पसंदगी मिली।
दिल्लगी के सवाल में
दरिंदगी का जवाब था

मौजुदगी में फर्द की एक विकार नज़र आया
ज़हन में उसके ये, विचार बोल आया।

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Nothing too much to tell about this. It just फर्द feeling from the bottom of my ❤🙂😐🙃🙂
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