मा की कोख Maaki Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मा की कोख Maaki

मा की कोख

में काणा था
में काला था
एक ही आँख थी
पर मेरे लिए मा की कोख थी

पिताजी के थे आशीर्वाद
करेगा हमारा जीवन आबाद
आँख का तारा तो है
नाम लेनेवाला कोई तो है।

यही थे माँ बाप
श्रेष्ठ और उत्तम अपने आप
स्वर्ग के रहनुमा
मेरे पिता और माँ।

कैसा रखा मुझे दुनिया में?
ना मिलेगी मिसाल पुस्तक में
उनके गुण में कैसे भूल पाऊं?
मेरे जीवन को में कैसे गिरा पाऊँ।

चरणरज रोज लिया करूंगा
श्रवण की तरह तीर्थदर्शन कराऊंगा
उनकी आँखों से लाचारी कभी नहीं दिखाई देगी
यहि मेरी सच्ची साधना और भक्ति होगी।

उनसे बढ़कर मेरा तीर्थधाम क्या होगा?
उनकी छाया छोड़कर मुझे आश्रय कहाँ मिलेगा
मेरा जीवन सफल होगा यदि उन्होंने कभी गीला नहीं किया
मेरे हर मोड़पर उन्होंने खड़े रहकर हाथपर पुचकार ही किया ।

मा की कोख Maaki
Sunday, June 18, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

उनसे बढ़कर मेरा तीर्थधाम क्या होगा? उनकी छाया छोड़कर मुझे आश्रय कहाँ मिलेगा मेरा जीवन सफल होगा यदि उन्होंने कभी गीला नहीं किया मेरे हर मोड़पर उन्होंने खड़े रहकर हाथपर पुचकार ही किया ।

0 0 Reply

1 Gayathri Prakash Comments Hasmukh Mehta Hasmukh Mehta welcome gayatri prakash Like Like Love Haha Wow Sad Angry · Reply · 1 · Just now

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success