मानवमात्र धोखेबाज
भगवान् भी सोचते होंगे
अब तो पद जायेंगे देलेने के देने
इंसान बनाकर हाथ धो दिए
"एक दूसरे को मारने कोआमादा '' दो आंसू" निकल गए।
इनको मोत का डर ना होता तो क्या न क्या करते?
एक दूसरे के प्रती बैरी की नजर से देखते
घाल घोंट देते सबके सामने?
फिर मूछों को ताव देते दिखाने।
समंदर खारा है तो क्या हुआ?
पहाड़ ऊंचा है तो क्या हुआ?
समंदर को ये लोग गायब कर देते
गरीब को तो ये लोग मार ही देते.
माँ बेटी की इज्जत सरेआम बिकती
आदमी की जान हो जाती सस्ती
ना खौफ होता किसी चीज़ का
या ना दर होता किसी बात का।
मौत का साया जब मंडराने लगता
तब उसे भगवान् याद आता
वो मंदिर जाता और प्रसाद चढ़ाता
बदले में बस ऐश्वर्य ही माँगता।
आज इंसान भरोसे के लायक नहीं
घर में आनेवाला हर आगंतुक परोणा नहीं
सोचसमज कर किसी को घर पे बुलाना
बाद में ना रह जाए पछताना।
पशु भी अपना एहसान व्यक्त करते है
"जब भी पुकारो" पूंछ हिलाकर आभार दिखाते है
वफादारी कुत्ते से सिखे
मानवमात्र धोखेबाज ही दिखे।
पशु भी अपना एहसान व्यक्त करते है जब भी पुकारो पूंछ हिलाकर आभार दिखाते है वफादारी कुत्ते से सिखे मानवमात्र धोखेबाज ही दिखे।
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Heartfelt expression. The poem reflects a very sorry picture of the society facing degeneration of human values day by day: वफादारी कुत्ते से सिखे.... मानवमात्र धोखेबाज ही दिखे।