मेरा धर्म श्रेष्ठ.. Mera Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मेरा धर्म श्रेष्ठ.. Mera

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मेरा धर्म श्रेष्ठ
बुधवार, १८ सितम्बर २०१९

मै कोने में बैठकर खूब रोइ
हो सका ना मेरा कोई
खूब कोसा अपने आप को
ना जान पाई सबको।

सब पूछते मेरी जाती
मुझे खूब हंसी आ जाती
में नहीं बताती
ये बात मुझे खूब रुलाती।

सब कहे मेरा धर्म है श्रेष्ठ
सोचना भी है उत्कृष्ट
पर आचरण है अलग अलग
आदमी नहीं है सजग।

सबको अपनी अपनी सोच है
सत्य की सब को खोज है
पर मुझे एक बात की खीज है
रीस भी आती है ओरचीड़ भी है।

में सोच लिया अपनेआप
नहीं रखना मैंने कोई संताप
मुझे आगे बढ़ना है
सब से अनोखा रुख अपनाना है।

हसमुख मेहता

मेरा धर्म श्रेष्ठ.. Mera
Tuesday, September 17, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 17 September 2019

दिनेश दिनेश Hide or report this 1 Like · Reply · 1h

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Mehta Hasmukh Amathalal 17 September 2019

में सोच लिया अपनेआप नहीं रखना मैंने कोई संताप मुझे आगे बढ़ना है सब से अनोखा रुख अपनाना है। हसमुख मेहता Hasmukh Amathalal

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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