मेरा कर्म मेरे साथ Mera Karm Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मेरा कर्म मेरे साथ Mera Karm

मेरा कर्म मेरे साथ


मेरा कर्म मेरे साथ
मानो बिजली चमक गयी
घर के सब को हचमचा गयी
मेरा इतना ही केहना ' में घर बसाना चाहती हूँ'
अपने आपको अलग से रखना चाहती हूँ।

पसंद नहीं आयी उनके मेरी बात
बहुत मारे हमको घूंसे और लात
वो मनवाना चाहते थे की 'में चलू उनके साथ'
पर मैंने नहीं हामी भरी और ऊँचा किया अपना हाथ।

हमारा बस इतना ही कहना
उनको लगा बुरा हमारा करना मना
पर मैंने कहा ये मेरी जिंदगी है
सच कहना ही असली सादगी है।

मेरा कर्म मेरे साथ
में चलूंगी जीवन पथ
में चढ़ जाऊंगीं चलते रथ पर
साबीत करके दिखाउंगी मनोरथ सही राह पर।

प्यार मेरी अमानत है
उसको रोकना ल्यानत है
उसको पनपने दीजिए
और अपनी हामी भरी दीजिए।

मेरा कर्म मेरे साथ  Mera Karm
Friday, April 14, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 14 April 2017

welcoem asha sharm a

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Mehta Hasmukh Amathalal 14 April 2017

Aasha Sharma Thank you very much Hasmukh Mehta ji Your greatness And my pleasure Unlike · Reply · 1 · 4 mins

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Mehta Hasmukh Amathalal 14 April 2017

प्यार मेरी अमानत है उसको रोकना ल्यानत है उसको पनपने दीजिए और अपनी हामी भरी दीजिए।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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