मेरा श्वान प्रेम Mera Shwaan Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मेरा श्वान प्रेम Mera Shwaan

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मेरा श्वान प्रेम
Saturday, May 12,2018
1: 43 PM

मुझे है लगाव
जब से था में गाँव
बड़े चाव से, दूध पिलाता था
बहुत ही प्रेम से, खेलता भी था

जब कुतिया बच्चों को जान देती थी
मानो सब बच्चों के घर ख़ुशी का माहौल छा जाता था
हर कोई अपने घर से, दूध और शिरा ले आता था
मैं भी ढेर सारा दूध का, इंतेझाम कर देता था

यह सिलसिला अबतक चालु है
करीबन दस-बारह बच्चे बड़े कर चुका हूँ
जैसे पंखी बड़े होने पर घोंसला छोड़ देते है
वैसे ही ये भी बड़े होने पर, आसपास अपनी जगह बना लेते है।

उनकी आँखों में एक चमक होती है
अहोभाव की भावना व्यक्त करते रहते है
थोड़ी सी देरी होने पर अपना गुस्सा दिखाते है
दूध पिते पिते अपना मानों आभार भी व्यक्त करते है।

मुझे उनकी आँखों में कुछ छिपी हुई वेदना भी दीखती है
मैरी आँखे भी उनको, इसे आश्वासन के रूप में, देखती है
वो आश्वस्त हो जाते है दूध का स्वाद लेकर
लेट जाते है और देखते रहते है मेरी और।

लोग केहते है "इसके बाद उनका मनुष्य अवतार होता है "
इसीलिए हर घर से एक रोटी का इंतेझाम होता है
गाय और कुत्ते को भरपेट खाना मिलता रहता है
हम सब के मन में उनका, हमेशा ख्याल रहता है

हसमुख अमथालाल मेहता

मेरा श्वान प्रेम Mera Shwaan
Saturday, May 12, 2018
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लोग केहते है इसके बाद उनका मनुष्य अवतार होता है इसीलिए हर घर से एक रोटी का इंतेझाम होता है गाय और कुत्ते को भरपेट खाना मिलता रहता है हम सब के मन में उनका, हमेशा ख्याल रहता है हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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