मेरी जिंदगी
सोमवार, ४ जून, २ ०१८
मुझे ले चल वहां
में जाऊ कहाँ?
मिलता ता है जहां आसमान से
आदमी रहता है सन्मान से।
करना नहीं था प्यार तुम्हे
याद आते हैवो लम्हे
जब में कहा करता था
"कुदरत का सही संकेत था।
नहीं चाहिए मुझे
सोना, जवाहरात ऐसे
जिस में ना कोई सुख हो
और देने के लिए दुःख ही दुःख हो।
मैंने कह ही दिया
मना लुंगी अपना जिया
बस तू मुझे ले चल
अपने प्यारे वतन।
लोग अपने हो
सभी से अपनी बातें हो
कहने के लिए सभी अपने खुद के हो
अपना घर और इसकी दीवारें हो।
में सब सेह लुंगी
सब को अपना बनाउंगी
खुले में शोर मचाउंगी
बस यही होगी मेरी जिंदगी।
हसमुख अमथालाल मेहता
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