मेरी दुल्हन Meri Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मेरी दुल्हन Meri

मेरी दुल्हन

दिल-इ बेताब
में लिखता हूँ किताब
हर पन्ने पर है मेरी कहानी
पर में नहीं करता हानी।

में चाहकर भी चाह नहीं सकता
अपने दिल की बात भी नहीं कह सकता
सुना सकता हूँ अपने मन से निकली उर्मि
जो दुसरों के लिए हो जाती है अमी।

वो कहती थी रुक जाओ
अपने बसेरे में शामिल करलो
' में नहीं कर सकता तुम्हारा अभिवादन'
में नहीं दे सकता तुम्हे नंदनवन।

मेरा सुर्ख जीवन मेरे लिए है
'पतझड़' ही मेरी साथी बनेवाली है
मुझे अंधेरो से लगाव है और गरीबी से नफरत नहीं
जीवन है तो फिर भागने की जरुरत नहीं।

में उसे बनाऊंगा मेरी दुल्हन
जो नहीं होने देगी सपनों का हनन
घोसला बनाएगी हम सब के लिए
हम सब रहेंगे उसमे बिना गभराए।

मेरी दुल्हन Meri
Wednesday, June 14, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

में उसे बनाऊंगा मेरी दुल्हन जो नहीं होने देगी सपनों का हनन घोसला बनाएगी हम सब के लिए हम सब रहेंगे उसमे बिना गभराए।

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success