मुझे रास्ता दिखाएगा mujhe raasta Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मुझे रास्ता दिखाएगा mujhe raasta

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मुझे रास्ता दिखाएगा

सजनी ना रुकना मेरी मजबूरी है
बात पूरी करना जरुरी है
इतनी सबुरी अच्छी भी नहीं
माझी को चल ना है रुकना नहीं।

में समंदर की गहराई माप चुका हूँ
तेरी आँखों में प्यार देख चुका हूं
खुदा ने चाहा तो हम फिर मिलेंगे
मिलजुलकर बातें करेंगे और खूब मौज करेंगे।

तू चुलबुली है और चंचल
साथ में उड़ रहा है तेरा ये आँचल
मेरा आसमान तो उसमे समां गया है
तेरी याद दिलमे रखकर अरमान बन गया है।

थमना मेरा काम नहीं
रुकना मेरा मुकाम नहीं
बस तेरी याद ही मेरी मंज़िल है
उर्मि से भरा ये मेरा दिल ही है।

तेरी आगोश में में खो चुका
सब कुछ देके अब पा सका
तुझे पाने का मौक़ा आज ही है
बस बाकी तो आगे बढ़ना मेरी फितरत है।

रात के अंधेरे में, में तुझे देख रहा हूँ
काली घटा में चन्द्रमा को निरख रहा हूँ
तू ना होती तो शायद चन्द्रमा को ना जान पाता
सच्ची निशानी को दिल में समा ना पाता।

बस हल्की सी मुस्कान बिखेर दे
आँखे मेरी और करके विभोर कर दे
पूरा सफर मेरा यूँही कट जाएगा
तेरी याद ही मुझे रास्ता दिखाएगा।

Wednesday, May 28, 2014
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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