Mujhe Sab To Mil Gaya Hai Tu Sakhi Hai Tere Dar Se... Poem by Suhail Kakorvi

Mujhe Sab To Mil Gaya Hai Tu Sakhi Hai Tere Dar Se...

मुझे सब तो मिल गया है तू सखी है तेरे दर से
मेरे काम बन गए हैं तेरी जुम्बिश-ए-नज़र से.

मेरे साथ बस खुदा है मै निकल पड़ा हूँ घर से,
'मै खुद अपना रहनुमा हूँ मुझे काम है सफ़र से'.

मेरी उसने की हिफाज़त कि बचा मेरे सबब वो,
जो चली थी तेज़ आंधी मै लिपट गया शजर से.

कहीं और कुछ है जैसे वो बजाये शाम-ए-वादा,
है अजब ये बेकरारी दिले ज़ार की सहर से.

हमें क्या जो नुक्ताचीं है कोई नज़्म-ए-मैकदा पर,
है पिलाने वाला अपना तो बला हमारी तरसे.

जो मिला न कुछ इशारा के नहीं है या कि हाँ है,
तो गुमान और गुज़रा है सुकूत-ए-नामाबर से.

रहो रस्मे आशिकी का है मुझी से बोल-बाला,
मै निबाह कर रहा हूँ तेरे जैसे खुद निगर से.

है क़फ़स में इस कदर अब मेरा हौसला शिकस्ता,
न उड़ान का इरादा न उम्मीद बालो पर से.

उन्हें खूब ही ये सूझी ये मुकाम है अमां का,
मेरे दिल में छुप गए हैं वो मेरे जुनूँ के डर से.

तेरे लब हैं मेरी दौलत मेरे पास तेरा दिल है,
मुझे क्या सुहैल मतलब किसी लाल से गुहर से.
___________________________________सुहैल काकोरवी


सखी= दानी, जुम्बिश-ए-नज़र= आँखों का हिलना, रहनुमा= रास्ता दिखाने वाला, हिफाज़त= रक्षा, सबब= कारण, नुक्ताचीं= आलोचना करने वाला, नज़्म-ए-मैकदा= मधुशाला की व्यवस्था, गुमान= शक, सुकूत-ए-नामाबर= सन्देश ले जाने वाले की ख़ामोशी, रहो रस्मे आशिकी= प्रेम के व्यव्हार, खुद निगर= अपने में लीन रहने वाला, कफस= कारागार, शिकस्ता= टूटा हुआ, बालो पर= परिंदे के पर, मुकाम= जगह, अमां= सुरक्षित स्थान, गुहर= हीरा.

Thursday, April 30, 2015
Topic(s) of this poem: love and life
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