नजर के सामने Najar Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

नजर के सामने Najar

नजर के सामने

मिल जाते है चेहरे हज़ार देखने को
वो चीज़ क्यों दिखाई नहीं देती चेहरेसे
सब के चेहरे पर जैसे मुर्दनी छायी
पर आपकी फोटो ने कमाल चीज़ दिखाई।

मैंने पढ़ने की कोशिश की
चेहरे पे कोई उलझन नहीं ज़माने की
बस हंसी और एक बेहतरीन साफ़ चेहरा
नहीं लगता बनावटी मुखौटा या मोहरा।

सब को में नहीं पढ़ पाता
में देखकर ही समझ जाता
यह व्यक्ति कोई और है
मुझे तलाशना कोई और है।

हीरे की परख जोहरी ही कर सकता है
मनुष्य को पहचानना कोई कोई ही कर सकता है
चलो हमने माना हम गलती कर रहे होंगे!
दिल को बहलाने ऐसी बाते करते होंगे।

सही को आप झुठला नहीं सकते
सूरज को आप ढँक नहीं सकते
जो है वो कांच की तरह साफ़ है
में सामने वाला चेहरा कुदरती इन्साफ है।

मैंने घूर घूरकर देखा
सोचा और परखा
यही एक फरिश्ते की रौनक है
जो चेहरे से टपक रही है।

हम से ज्यादा लिखा नहीं जाएगा
कोई भी चीज़ का मूल्यांकन शब्दों से नहीं किया जाएगा
जो हे वो साफ़ दिख रहा नजर के सामने
आप तो कुछ कहे अपने बारे मे।

नजर के सामने Najar
Friday, August 4, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 05 August 2017

welcome Jobelyn Dela Cruz Cuenta Friend Like · Reply · 1 · Just now Manage

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Mehta Hasmukh Amathalal 05 August 2017

welcoem Manisha Mehta 24 mutual friends Like · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 04 August 2017

Priyanka Bhattacharya Very nice sir Like · Reply · 1 · 13 mins Remove

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Mehta Hasmukh Amathalal 04 August 2017

welcome priyanka bhattacharya Like · Reply · 1 · 1 min

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Mehta Hasmukh Amathalal 04 August 2017

जो चेहरे से टपक रही है। हम से ज्यादा लिखा नहीं जाएगा कोई भी चीज़ का मूल्यांकन शब्दों से नहीं किया जाएगा जो हे वो साफ़ दिख रहा नजर के सामने आप तो कुछ कहे अपने बारे मे।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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