मेरे प्रियतम सागर (O My Beloved Ocean) Poem by Anita Sharma

मेरे प्रियतम सागर (O My Beloved Ocean)

Rating: 5.0

तुम विशाल हो, विराट हो, अपनी सीमायों का उलंघन नही करते,
मगर मैं तो हवा हूँ, वहती हुई पवन,
हूँ तुमसे मिलने को बेताब,
देखो मैं कितने करीब हूँ तुम्हारे
तुम्हारे नीले बदन को छू रही हूँ,
यूँ लगता तुम भी बरसों से बेताब
मुझे अपनी बाहों में भरने को,
आज तुम मेरे चेहरे को चूम रहे हो,
तुम्हारी लहरें मुझे बाहों में भरने को आतुर हैं,
यूँ लगता है मानो तुम भी थे कब से उदास,
मैं बहुत हूँ बेताब तुम्हारी बाहों में आने को, मुझे समेट लो,
कल कल बहता पानी मानो तुम्हारा प्रेम संगीत हो,
मैं चंचल पवन तुमसे पूछती हूँ
क्यूँ है दूरी मुझसे इतनी क्यूँ नही मुझे गले लगाते,
हज़ारों जीव अपनी प्यास बुझाते तुम्हारे जल से
मगर तुम उथल पुथल मानो बेचैन हो मुझसे मिलने को,
आज तो मिलन होगा प्रियतम
देखो कैसे तुम्हारी लहरें मुझे चूमने को हैं आतुर,
ओह यह खिल्लती धूप मानो मुस्करा रही हो
हमारे मिलन को देखकर
देखो यह गीत गाते पंछी सब खुशियाँ मनाते,
यह ढलती सांझ औंस की बूँदें,
सब हमारे मिलन की निशानियाँ हैं,
आज यह आँखों से बहता नीर कैसा?
खुश हो प्रियतम लगता मानो ऐसा,
हम दोनो तो अटूट प्रेमी हैं
कभी अलग दिखते मगर समाए हैं सदा एक दूजे में,
मुझे गले लगा लो अपने आँचल में सदा के लिए छुपा लो,
मेरी इस बेचैनी को सदा के लिए अपने में समा लो,
लगता है कितने बेचैन हो तुम मिलन को बिरह मैने ही नही तुमने भी सही,
कश्ती में सवार जब दूसरे तट को मैं निकली
तो तुम कल कल बहते मेरे साथ ही चल दिए
कहीं दूसरा शोर नही सिर्फ़ तुम मीलों तक सिर्फ़ तुम,
तुम करते मुझसे अटखेलिया कभी बूँद बन आँचल पे बरसते हो
कभी आँसू बन आँखों से बहते हो
और कभी अपनी लहरों से मेरे गालों को छू मुझको हया की लाली देते हो,
आज सब बंधन तोड़ बस तुमको जी भर गले लगायूं
किसी से अब ना शरमायूँ,
मांझी ने हाक़ लगाई जाना होगा सांझ ढले उस पार,
मेरी आँखें भर आई तुम आँसू बन छलके
मेरी धड़कन समझो रुकी मॅन हिमाल्या सा भारी,
मुझको रोको प्रियतम मुझे अपनी लहरों में समेट लो सदा सदा के लिए,
क्यूँ हो तुम इतने निर्मोही,
आज मेरे मॅन को कोई समझाए आँसू नही है रुकते मेरे,
और देखो तुम भी कितने उदास हो
यूँ लगता मानो सब आँसू तुम ही बहाते हो,
मेरे प्रियतम मुझको अपने पास बुलाओ सदा सदा के लिए,
मगर तुम कर्तव्य पत्थ पर बने हो,
तुम बह निकले मुझ पगली की तरह तो संसार लहरों में डूब जाएगा,
ना प्रियतम मेरे तुमको कोई पापी कहे यह मुझे स्वीकार नही,
मैं आयूंगी तुमसे मिलने सदा सदा के लिए
प्यासी तुमसे मिलन को बेचैन
जब लौटून तो मुझे गले लगाना प्रियतम,
बाहों में भर कस के गले लगायूंगी,
मेरा तुम्हारा मिलन सदा अमर होगा,
हे विशाल अनंत सागर तुम मेरे प्रेमी सदा हो
मैं चंचल सी बहती पवन तुम्हारी प्रेयसी तुमसे मिलने को सदा आतुर,

मेरे प्रियतम सागर  (O My Beloved Ocean)
Wednesday, January 6, 2016
Topic(s) of this poem: love and dreams,love and life,life
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
कुछ दिन पहले गोआ जाने का अवसर मिला, समुद्र की लहरों से परिचय हुआ, लंबी कश्ती यात्रा समुद्र के बीचोबीच कुछ एहसासों ने जनम लिया, समुद्र को गौर से देखा तो उसे अपना अनंत प्रेमी पाया, ऐसा लगा सदियों से वो मेरा प्रेमी है, वो कितना मर्यादित कितना विशाल कितना अनंत प्रेमी और मैं एक हवा का झोंका बेचैन, मिलने की तड़प, गहरी भावनाएँ उमड़ी मेरे मॅन में, उन्ही कुछ पलों को आप सब से सांझा कर रही हूँ, यह मेरी हिन्दी की पहली रचना है, जैसे महसूस किया लिख दिया, इस रचना के माध्यम से मैने वही लिखा जो मैने महसूस किया, एक अनंत प्रेम ने दिल की गहराई में जनम लिया,
अनिता शर्मा 
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 06 January 2016

बहुत सुन्दर कविता है, उपमा अति उत्तम है, वर्णन विशाल, मोतियों को माला में पिरोती हुई कविता है...............10+++

2 0 Reply
Anita Sharma 06 January 2016

thank you so much sir, aap hindi ke ek uttam kavi hain, aapki rachnayen behad rochak hain, aapse prashnsa pakar manoval badha hain, aapka koti dhnyavaad

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