पिता-पुत्र की अलग कहानी
है तुमको फिर आज सुनानी
कहती थी जो मेरी दादी-नानी
लगती थी वो बातें बड़ी सयानी
पिता जन्म लेता फिर से
जब पुत्र रूप में आता जग में
यह पुत्र नही समझे न जाने
पिता की महिमा न पहचाने
जैसे भी हो संभव जितना
प्यार पुत्र से करता उतना
पुत्र, पिता का है वह सपना
जिसको जग में कहता अपना
सर्वस्व निछावर है कर देता
पिता पुत्र से कुछ नही लेता
क्यों नही पुत्र से हमे अपेक्षा
पिता की पूरी करे शुभेच्छा
जब तक सूरज चांद रहेगा
पुत्र-स्नेह में पिता मिलेगा
हर कोई हो पिता सा मेरा
मैं भी पिता बनूं उन जैसा
जो भी सीखा जो भी चाहा
पिता से ही सब कुछ है पाया
आज पिता नही साथ हमारे
है याद आ रहे वे पल सारे
एक नही दो-तीन चार हम
भाई-बहन हम मिल थे ग्यारह
कमी किसी को वैभव की हो
नही स्नेह का कुछ अभाव था
(कैसे मेरे मुख से निकला
क्यों मुझको पैदा ही किया था)
घोर अग्नि में जलता है मन
बरबस बेबस लगता है तन
पिता मुझे तुम क्षमा-दान दो
अभय कह रहा तुम महान हो
पिता तुम्हे हम नमन कर रहे
जग में तुमको सम्मान दे रहे
आज तुम्हारे जन्म दिवस पर
पिता आज अभिमान कर रहे ।
अभय शर्मा,29 जनवरी 2010
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