अनंत प्रेम तुमसे Poem by Prasant Kumar

अनंत प्रेम तुमसे

तुम साथ हो मेरे या साथ हो नहीं
बातें जो सच हैं उन्हें छुपा रहा हूं मैं

तुम मुझे देखो या देखो नहीं
अपनी नजर तुमसे नहीं हटा रहा हूं मैं

तुम मुझे चाहो या चाहो नहीं
बातें सारी तुम्हारी बता रहा हूं मैं

तुम मुझे पसंद करो या करो नहीं
अनंत प्रेम तुमसे ही कर रहा हूं मैं

मेरी आंखों में तुम तुम्हारी आंखों में मैं नहीं
सपने सारी रात तुम्हारे ही देख रहा हूं मैं

तुम साथ दो मेरा या साथ दो नहीं
हर मुसीबत में तुम्हारा साथ निभा रहा हूं मैं

तुम मुझे याद करो या करो नहीं
अपने दिल में तुम्हे ही बसा रहा हूं मैं

तुम मुझे पसंद करो या करो नहीं
अनंत प्रेम तुमसे ही कर रहा हूं मैं
- Prasant Kumar

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This is not a poetry they are some words by inner feelings
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