सब कुछ कह दिया Sab Kuchh Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सब कुछ कह दिया Sab Kuchh

सब कुछ कह दिया
Friday, April 27,2018
8: 17 AM

तुम आवाज तो दो
मुझे कहने का मौक़ा तो दो
तुम मुझे जानो और समझो
फिर ही धीरे से कान में केहदो।

में नही कहुँगा
मैं छोड़ के चला जाऊंगा
तुम्हे नहीं सताऊंगा
पर जगाता रहूंगा।

मुझे मख्खन लगाने की आदत नहीं
और बुरा मानने की कोई बात नहीं
तेरी गुनगुनाहट कानों में गूंज रही
जैसे कोयल सुबह सुबह चहक रही।

मैं नहीं मानता की "तुम मुज से दूर हो"
इसके वाबजूद भी तुम मुझे पास लगती हो
मेरा खुश होना वाजिब है
पर बात इतनी ही गजब है।

मुझे यही कहनाहै
आपने मना नहीं करना है
मैंने सब कुछ कह दिया है
आप आप पर इसका निर्णय छोड़ दिया है।

सब कुछ कह दिया Sab Kuchh
Saturday, April 28, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 28 April 2018

मुझे यही कहनाहै आपने मना नहीं करना है मैंने सब कुछ कह दिया है आप आप पर इसका निर्णय छोड़ दिया है। Hasmukh Amathalal

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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