Smaranika - स्मरणिका Poem by Abhaya Sharma

Smaranika - स्मरणिका

आज की ही रात की तो बात थी वह
दिल को दहलाने की कैसी रात थी वह
जब आखिरी लम्हा जिया था ज़िंदगी का
इस देश की खातिर दिया बलिदान था

प्राण तुमने त्याग कर भी था दिखाया
पाठ एक था देशभक्ति का सिखाया
हार कर भी जीत होगी यह तुम्हारी
साल भर के बाद भी है याद आती

हे मेरे बंधु, सखा हे मित्रगण मेरे सुनो
करकरे की कामटे की बात सालस्कर की हो
जिक्र हो संदीप उन्नी की कथा न व्यर्थ हो
उनकी शहादत रंग लायेगी नया कुछ अर्थ हो ।

हम उन्हे करते नमन
है शीष झुकता है यह तन
नाज़ है तुम पर है कहता यह वतन
आज तुम को याद कर रोता है मन ।

अभय शर्मा,26 नवंबर 2009

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Realistic
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Abhaya Sharma

Abhaya Sharma

Bijnor, UP, India
Close
Error Success