वास्तविकता.. Vastvikta Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

वास्तविकता.. Vastvikta

वास्तविकता
शुक्रवार, ११ अक्टूबर २०१९

यह वास्तविकता नहीं
कहने की कोई आवश्यकता भी नहीं
जो भी हो उसकी देन हो
उसपर जरूर मनन हो।

किसी चीज़ को मानना
या ना मानना
होनी मनसूफी पर है
पर उसपर फलसफी ना हो।

कष्ट आनेपर उसे याद करना
वरना कोसते रहना
यह मानवजात का मूल स्वभाव है
उसका झुकाव हमेशा अनिश्चित है

हमारा मनोबल दृढ रहे
स्वास्थ्य भी अच्छा रहे
सही निर्णय लेने की शक्ति बनी रहे

जब आदमी अपने अंतिम पड़ाव की और पहुंचता है
तो उसे अपमी गलतियों का एहसास हो जाता है
पर तब तक बहुत पानी गंगा मेंबहुत कुछ बह चुका होता है
आदमी ना अपना कौशल पर याददास्त भी खो चूका होता है

वास्तविकता का एहसास हमें हो जाता है
मनुष्य जीवन के क्षणभंगुरता का भान हो जाता है
"उसके घर जाना तय है " उसका डर होने लगता है
कब जीवन से छुटकारा हो उसका ही रटन होने लगता है

हसमुख मेहता

वास्तविकता.. Vastvikta
Friday, October 11, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 11 October 2019

वास्तविकता का एहसास हमें हो जाता है मनुष्य जीवन के क्षणभंगुरता का भान हो जाता है " उसके घर जाना तय है " उसका डर होने लगता है कब जीवन से छुटकारा हो उसका ही रटन होने लगता है......so touching and true. A beautiful poem is amazingly shared with nice graphic. Thanks for sharing.

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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