Vidur विदुर Poem by Krutik Patel

Vidur विदुर

Rating: 5.0

पुत्र थे वो दासी के, पर उस युग के सबसे ज्ञानी थे।
बडे से बड़े विद्वान भी, समक्ष उनके अज्ञानी थे।।

धर्मराज के अवतार वह, न्याय के साक्षात् स्वरूप थे।
आवाज उस सभा में उठाई, जहाँ पितामह भीष्म भी चुप थे।।

नारी का अपमान हुआ जहाँ, उस सभा को उन्होंने धिक्कारा था।
यूं ही नहीं वासुदेव ने छप्पन भोग छोड़, उनके घर का साधा भोजन स्वीकारा था।।

COMMENTS OF THE POEM
Pallab Chaudhury 24 October 2022

Beautifully depicted the epic character...well done. With best wishes for Diwali/ PC

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