Yah Raat Lekar Subah Nai Ayegi - यह रात लेकर सुबह नई आयेगी Poem by Abhaya Sharma

Yah Raat Lekar Subah Nai Ayegi - यह रात लेकर सुबह नई आयेगी

यह रात लेकर सुबह नई आयेगी
तम छट चुका होगा प्रभा फिर छायेगी
यह ज्ञात होगा कोकिला सुर में दुबारा गायेगी
इस धरा पर आज फिर से धुन कॊई बजायेगी
हाथ में अपने लिये नव अस्त्र-शस्त्र
हमसे मिलने आज फिर दुर्गा भवानी आयेगी
शत्रुऒं का नाश कर फिर से जगत में
नव शांति की स्थापना कर जायेगी
हम अभय का रूप धर कर जी सकेंगें
जितना जी चाहेगा अमृत पी सकेंगें
स्वर्ग की हम कल्पना कर भी सकेंगें
बन के मानव फिर से जीवन जी सकेंगें
यह रात लेकर सुबह नई आयेगी
तम छट चुका होगा प्रभा फिर छायेगी

अभय शर्मा,5 अक्टूबर 2008 09.09 घंटे
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POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This was dedicated as Dussehara gift
COMMENTS OF THE POEM
Gajanan Mishra 11 December 2012

good poem Abhaya, thanks. I invite you to read my poems and comment.

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Abhaya Sharma

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Bijnor, UP, India
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