वो बैठा था लोगों की उस भीड़ में अकेला
सा जैसे ब्राह्मणों में बैठा कोई अछूत।
लम्बे, गंदे, और बिखरे-उलझे बाल,
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भुला नहीं हूँ। अभी इतना तो याद है।
जब तू खड़ा होने कि कोशिश करता था ना, और कांपते हुऐ पाओं से चलने कि चाह में बार बार गिरता था,
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अधूरा हो गया हूं इतना मैं तेरे जाने के बाद,
सहारा हो गया बेसहारा तेरे जाने के बाद।
कभी जो याद करके बातें तेरी खिलखिलाता हूं,
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Shayari
बेवकूफ़ और बदअक्ल हैं वो लोग,
जो मोहब्बत मे मरने मारने की बात करते हैं।
ये तो नाम है जिन्दगी का,
फिर क्यूँ इस पर एख़तलाफ करते हैं।
Ahtesham poetry