अधूरा Poem by Ahtesham Poetry

अधूरा

अधूरा हो गया हूं इतना मैं तेरे जाने के बाद,
सहारा हो गया बेसहारा तेरे जाने के बाद।

कभी जो याद करके बातें तेरी खिलखिलाता हूं,
छलक आते हैं आंसू सिसकियों मे डूब जाता हूं।

अंधेरी रात में छुप छुप के सब से खूब रोता हूं,
मैं तकिये को अपने मोतियों से यूं पिरोता हूं।

साथ मेरे हैं सभी एहलो अयाल,
मैं फिर भी हूँ अकेले पन से यूं बदहाल।

हो ना सके मुझसे, मुझपर तेरे फर्ज़ भी अदा,
अब हो गए हैं मुझपर ये सभी कज़ा।

अब जियारत को जो तेरी, दिल को मेरे चाह होती है,
पहुंच जाता हूँ कब्र पे आँख मेरी गुलजार होती हैं।

तेरे दम के साथ ही टूटा मेरा दिलो दिमाग
और मेरी सारी आस,
मैं भी मर गया हूं बस चल रही अब भी ये साँस।

तू मुझसे दूर है फिर भी तुझकॊ पास पाता हूँ,
खुदी को आईने में देख कर आंसू बहाता हूं।

अधूरा हो गया हूं इतना मैं तेरे जाने के बाद,
सहारा हो गया बेसहारा तेरे जाने के बाद।

Wednesday, December 6, 2017
Topic(s) of this poem: feeling
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