भुला नहीं हूँ। अभी इतना तो याद है।
जब तू खड़ा होने कि कोशिश करता था ना, और कांपते हुऐ पाओं से चलने कि चाह में बार बार गिरता था,
तब मैं झुक कर तेरे छोटे छोटे हाथों में अपनी उँगलियाँ पकड़ाकर खुद कछुआ बन तुझे चलाता था,
मैं थका हारा आता जरूर था, 'तेरी तरह' पर मैं भूल जाता था, 'अपनी भूक, थकान, तनाव और उलझने' सब भूल जाता था, जब तेरी खिलखिलाती हँसी देखता था,
पर आज मैंने ये महसूस किया, जब मैं थर्-थराते हाथों में छड़ी लिए, काँप्ते पाओं पर हिलता शरीर, संभालते हुऐ चलने की कोशिश कर रहा था तो,
तो तू 'क्या आप भी इतनी धीरे धीरे चलते हो चला नहीं जाता क्या? '
पता है, ये सुनकर जो पाओं थे ना और जोरों से थर्राने लगे, और मैं जल्दी चलने की कोशिश करने लगा, क्योंकि
क्योंकि अब वो मेरा हाथ छोड़, बहुत दूर निकल गया था, और मैं अब भी वहीं खड़ा सिर्फ चलने की सोच रहा था,
जहाँ वो मुझे ताना मार मेरी पहुँच से बहुत दूर निकल गया।
भूला नहीं हूँ अभी इतना तो याद है।
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