श्वेत शंखिनी चंद्रवदन ये
जननी लाख विचारों की
व्यक्त नहीं कर सकता तुझसे
मन का अंतरद्वन्द सखे।
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करूँ वासना की उपासना,
और करूँ उसका सम्मान;
रहूँ मैं उसकी छात्र-छाया में,
हर पल उसके भक्त समान;
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बहारें हुस्न की आयी
बारिशे इश्क लाने को,
हुआ मजबूर मन-भंवरा
हवस के गीत गाने को;
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तेरी गली मेरी गली एक ही गली तो है,
तोड़ो चाहे दिल मुलाकात निश्चित है,
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तेरे बिना/Tere Bina
तेरे बिना सूनी-सूनी रतियाँ गुजारी है,
खुद से ही कर-कर बतियाँ गुजारी है;
सूना है पलंग घर - बार सब सूने हैं,
सूना ये जहाँ दिन रात सब सूने हैं;
घर दफ्तर से बाजार सब सूने हैं,
सोमवार से रविवार सब सूने हैं;
मेरे घर आने तक सज-धज जाती थी,
आईने को देख शरमाती घबराती थी;
जब दरवाजे से आवाज मैं लगाता था,
दरवाजा खोलने को दौड़ी चली आती थी;
स्वागत मे मेरे होले से मुस्काने की,
नज़रें झुका के वो अदाएं शरमाने की;
कर के बहाने मेरे टाई खोलने की, फिर
बाँहों में लिपट कुछ देर रुक जाने की ……।