पल यौवन के चंद सखे/ Pal Yauvan Ke Chand Sakhe Poem by Manish Solanki

पल यौवन के चंद सखे/ Pal Yauvan Ke Chand Sakhe

श्वेत शंखिनी चंद्रवदन ये
जननी लाख विचारों की
व्यक्त नहीं कर सकता तुझसे
मन का अंतरद्वन्द सखे।
छल -छल, कल-कल यौवन पर क्यों
हा नियंत्रण लगा रहे?
प्यासा भँवरा तड़प रहा है
व्यर्थ बहे मकरंद सखे! बिन भँवरा अमराई सुनी,
सुने सारे वन -उपवन;
सरिता सुनी, पर्वत सुने,
कर दे सब आनंद सखे!
हल रेखा में बीज पड़े ना
व्यर्थ भूमि की उर्वरता,
मरे जगत मे प्राणी भूखे
पड़े रहे रस्कन्द सखे।
मिलती क्या समृद्धि जगत में,
संचित करके यौन निधि?
दान में ही कल्याण निहित है
पल यौवन के चंद सखे।

पल यौवन के चंद सखे/ Pal Yauvan Ke Chand Sakhe
Wednesday, December 30, 2015
Topic(s) of this poem: romantic
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