श्वेत शंखिनी चंद्रवदन ये
जननी लाख विचारों की
व्यक्त नहीं कर सकता तुझसे
मन का अंतरद्वन्द सखे।
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करूँ वासना की उपासना,
और करूँ उसका सम्मान;
रहूँ मैं उसकी छात्र-छाया में,
हर पल उसके भक्त समान;
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बहारें हुस्न की आयी
बारिशे इश्क लाने को,
हुआ मजबूर मन-भंवरा
हवस के गीत गाने को;
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तेरी गली मेरी गली एक ही गली तो है,
तोड़ो चाहे दिल मुलाकात निश्चित है,
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