मन-भंवरा Poem by Manish Solanki

मन-भंवरा

बहारें हुस्न की आयी
बारिशे इश्क लाने को,
हुआ मजबूर मन-भंवरा
हवस के गीत गाने को;
खिली यौवन की कलियाँ देख
पुलकित हो उठा है,
ख्वाहिश लिये दिल में
परागें चूस जाने को।

बड़ा भोला है ये तो
जानता कुछ भी नहीं है,
बहारें देने आती हैं नहीं
आती रिझाने को।

कोशिशें की लाख पर
समझा नहीं पाया,
प्यास अधरों पर थी जो
भुला नहीं पाया;
कहता रहा कहता रहा
पर ये नहीं माना,
बढ़ता गया बढ़ता गया
साँसें मिलाने को।

दिल ने कहा कि मन को
ऐसे रोकना मत,
हर घड़ी हर बात पर
यूँ टोकना मत;
आज जो अवसर मिला है
कल नहीं होगा,
आज मन को रोक लो तो
छल नहीं होगा?

कभी दिल में था रगिस्तान पर
वो आज दरिया है,
डूब जाने का मोहब्बत में
ये जरिया है;
कभी उठती कभी गिरती
नहीं रूकती नहीं थकती,
ये लहरें चाहती हैं आज
सागर में समाने को।

Saturday, January 12, 2019
Topic(s) of this poem: love,love and art
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