तेरे बिना/Tere Bina Poem by Manish Solanki

तेरे बिना/Tere Bina

Rating: 5.0

तेरे बिना सूनी-सूनी रतियाँ गुजारी है,
खुद से ही कर-कर बतियाँ गुजारी है;
सूना है पलंग घर - बार सब सूने हैं,
सूना ये जहाँ दिन रात सब सूने हैं;
घर दफ्तर से बाजार सब सूने हैं,
सोमवार से रविवार सब सूने हैं;
मेरे घर आने तक सज-धज जाती थी,
आईने को देख शरमाती घबराती थी;
जब दरवाजे से आवाज मैं लगाता था,
दरवाजा खोलने को दौड़ी चली आती थी;
स्वागत मे मेरे होले से मुस्काने की,
नज़रें झुका के वो अदाएं शरमाने की;
कर के बहाने मेरे टाई खोलने की, फिर
बाँहों में लिपट कुछ देर रुक जाने की ……।

Thursday, December 10, 2015
Topic(s) of this poem: romantic
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 10 December 2015

परस्पर प्रेम का यह रोमान्टिक स्वरूप वास्तव में मन में बस जाने वाला है. ईश्वर इसे अनंत काल तक यूँ ही बनाये रखे, यही हमारी दुआ है. एक निवेदन. यह है कि जहाँ जहाँ 'सुना' टाइप हुआ है उसे दुरुस्त कर के 'सूना' कर लें.

1 0 Reply
Manish Solanki 10 December 2015

its a very nice poem

1 0 Reply
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