एहसास के दरिया में उतरकर देखना है
दुश्मनो को देख लिया दोस्तों को देखना है
सूरज को आज उभरते तो देख लिया है मैंने
शम्स की खाल को उतरते देखना है
पूरा ये सफर ज़ीस्त का करना अभी है बाकी
इंतज़ार -ए -इश्क़ में मरना अभी है बाकी
तराज़ू में तोलते रहे अपने जज़्बात हम
रिश्तों में उलझते रहे आंसू की तरह हम
अब किस को बताओगे "आशी " तुम अपनी कहानी
जज़्बात की गहरायी से सुनता यहाँ है कौन
Mutasirkun shairana kheyalat aur dilkash andaze betan, keya bat hay Asim Nihal ki!
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बेहतरीन ग़ज़ल. Thanks for sharing Asim.
Shukriya Savitaji