सूरज भी ढल गया
चाँद भी निकल गया
तुम हो कहाँ प्रियतम
अब मौसम भी बदल गया
बहारें भी आ गयी हैं
घटा भी छा गयी हैं
कोयल ने राग छेड़ा
बुलबुल भी गा रही है
अब तो बता दो मुझको
कब तलक आओगे तुम
ऑंखें भी थक गयी है
अब इंतज़ार कर के
लो दिन निकल ने को है अब
उषा बन तू आओ
पहली किरण से अब तुम
ये अँधेरा मिटा के जाओ
as usual very beautiful poem sir. loved it.