वो ख्वाब Poem by Sharad Bhatia

वो ख्वाब

Rating: 5.0

वो ख्वाब

वो ख्वाब सिमट रहे थे इन बंद आँखों में,
जो तुम्हें पाना चाहते थे पर बंद थे इन बंद आँखों मे ।।

शायद इस मोहब्बत को मुकम्मल मुकाम ना मिल पाया,
इसलिए बंद थे शायद इन बंद आँखों में।।

कहने को बहुत कुछ था, पर कह कुछ भी नहीं पाये,
बस सिमट गए इन बंद आँखों मे।।

एक शेर अर्ज़ करना चाहता हूँ

ख्याल आया, तो ख्याल भी उसका आया,
जब आँखे बंद कि तो ख्वाब भी उसका आया।।

एक प्यारा सा एहसास मेरी नन्ही कलम से
(शरद भाटिया)

Tuesday, October 6, 2020
Topic(s) of this poem: dream,feeling,sad love
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
एक ख्वाब..बस एक ख्वाब..! ! !
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 07 October 2020

Wah wah bandh ankhon ne sab kuch bayan kar diya...... Bandh ankhon se jo Bandagi ki hai uska jawab nahi..10************

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Rajnish Manga 06 October 2020

प्रेम की रसमय किन्तु एकतरफ़ा अभिव्यक्ति को समर्पित इस खूबसूरत रचना के लिए आपका धन्यवाद, शरद जी.

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Varsha M 06 October 2020

Baand aakhoon me simte hai raaz bahut kul jaye to mushkil hai bahut. Raaz ko raaz hi rahne do aur kwab ko khwab he rehne do. Bahut oomda kahal. Dhanyawad.

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