***चमेली ***
आज मैने देखी वो हवेली !
जहॉ रहती अब माँ अकेली! !
वो घर आँगन वो चमेली
यही तो है इस कविता मे पहेली
कभी थी ये रंगो भरी हवेली ये
आज सुनी हो गई वो हवेली
बता मुझे बात ये चमेली
अब क्यों न आता क्यों यहाँ
क्यों कोई अब गाता न यहाँ
किसको सुनाऊ -किसको बताऊ
अब तू ही सुनले दुखड़ा अ सहेली
तू ही तो है सहेली -मेरी चमेली
कभी - फूलो से महकती थी ये हवेली
जिन कलियों से चहकती थी ये हथेली
सुनो -कल्याण कविता मे आज पहेली
आज कोई बाहर गया-शहर हो गया
मांगी दवा दर्द की -कोई मुकर गया
देख पीड़ा तन की -कोई मुस्करा गया
चल बसे जो संभालते थे मुझे कभी
दे गए अपनी मुझे जो निशानी
बता चमेली पे बैठी कोयल तु दीवानी
है उनकी अब केसी ये नादानी
लड़ती रही हर तूफ़ा से जिनसे मैं अकेली
वो घर क्यों बन चला आज सुनी हवेली
अरे -पग पग पर जिनको सम्भाला हमने
जिनमे झोंकी थी हर मुश्किल में जवानी
फितरत तो देखो आज तुम इन्सानी
जो न सम्भाल सकते इक माँ को
वो क्या सम्भालेंगे सुन्नी अब ये हवेली
रह गई है अब मैं और मेरी सहेली
उस बेल का नाम है चमेली
है उस पेड़ का नाम चमेली
जो घर था उसका नाम अब हवेली
रह गई अब चमेली ही मेरी सहेली
*दुआ फिर भी उनको है अ हथेली*
सुनी आज क्यों वो हवेली - हवेली
क्यों आज हवेली में माँ अकेली
आज क्यों है सुन्नी वो हवेली
क्यों हवेली में माँ आज अकेली ! !
क्यों हवेली में माँ आज अकेली ! !
कवि -कल्याणराज
9928043855
kavikalyanraj@yahoo.in
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