- - बहू की शर्ते - - Poem by KALYAN SINGH CHOUHAN

- - बहू की शर्ते - -

- - बहू की शर्ते - -

सास लंगड़ी हो चिल्लाये, पर चल न पाये
ननद गूंगी हो कहना चाहे, पर कह न पाये
ससुर अँधा अँधा हो देखना चाहे,
उसका धन हो अँधा-देख न पाये
पति ऐसा जो रोज कहे आ जा मेरी चंदा
अब तू ही है इस घर की सुनन्दा
सबका काम छोड़ -आ पास बैठ मेरी राधा
ये तीनो तो यु ही करेंगे
कोई गीत ही सुनादे आधा
यही मेरी शर्ते है
न घर पे कोई आएगा
न अब कोई सताएगा
देखते जाओ
अब केवल तू और मै
दूसरा कोई अब घर मे न रह पाएगा
- - - कहे कल्याण सन्देश - - - -
अरे बावरी आज की बहू
सास न होगी दुलार कौन करेगा
ननद न होगी श्रृंगार कौन करेगा
ससुर न होगा -तो बहू तेरा मान कौन करेगा
ये तीनो से ही तो पूरा परिवार होगा
परिवार मे सिर्फ पति
ये मोह तुमको छोड़ना होगा
इस भटकते रास्ते को छोड़ना होगा
टूटते रिश्ते -अब जोड़ना होगा
ये गलत है शर्तो का रास्ता
बहू इसे अब छोड़ना होगा
यही मेरे ही देश की रीत है
और धर्म निभाना ही
बहू मेरे देश का राष्ट्र गीत है
ये गलत है बहू शर्तो का रास्ता
रास्ता ये अब छोड़ना होगा
टूटते परिवार को अब जोड़ना होगा
टूटते है परिवार को अब जोड़ना होगा

कवि-कल्याण
कल्याण सिंह चौहान
kavikalyanraj@yahoo.in
99280-43855

Friday, April 4, 2014
Topic(s) of this poem: family
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