***नारी को समझो*** Poem by KALYAN SINGH CHOUHAN

***नारी को समझो***

***नारी को समझो***
ये नारी नहीं है इतिहास की!
कड़ी समझो आज के समाज की! !
ठोकर नहीं है इस राज़ की
प्यासी जरुर है स्वाभीमान के ताज की
गीत है कोइ चीज नहीं साज की
समझलो -नई पीढ़ी के लोगो
संस्कारिनी जिसका नाम
वंश वाहिनी जिसका काम
श्रृंगार है जिसका नाम
दुलार है जिसका काम
रक्षक बनना जिसका नाम
परवरिश करना जिसका काम
सबकुछ सहना जिसका नाम
सहकर कुछ भी न कहना जिसका काम
शुरू हो सुनहरी सुबह
तो सुनहरी हो घर की शाम
अरे, माँ है जिसका नाम
हाँ माँ ही है इसका नाम!
हाँ माँ ही है इसका नाम! !
**कहे कल्याण सन्देश**
समझो, सृष्टी का गहना है एक नारी
क्योकि ये तो कदर करती है
घर मे काम-काज की
समाज के लोक-लाज की
समझ भी रखती है
समाज के बेसूरे राग की
न जाने तुम कब समझोगे
कि ये तो स्वच्छ नारी है आज की
अरे अब तो रक्षा करलो तुम-इस देश में
तुम इस घुघंटरूपी समाज की
वरना इन्तज़ार करते रह जावोगे
हर सुनहरी सांझ की-हर सुनहरी सांझ की
ये नारी नहीं है इतिहास की!
कड़ी समझो आज के समाज की! !
अब तो कड़ी समझो आज के समाज की! ! !
कवी -कल्याण (कल्याण सिंह चौहान)
email-kavikalyanraj@yahoo.in

Sunday, March 9, 2014
Topic(s) of this poem: women
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