***सत्ता का केमिकल***** Poem by KALYAN SINGH CHOUHAN

***सत्ता का केमिकल*****

***सत्ता का केमिकल*****
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ये सत्ता का केमिकल
चारों तरफ फैलता हलचल
चुनते है वो भी न जानते
कैसा होगा हमारा कल
नये मुदे निर्भया या दामिनी
वही महगाई -आरक्षण ओर भ्रष्टाचार
रहेगी वही आतंक की तलवार
नही बदलती सुरत देश की
केवल बदल जाती है सरकार
सुबह महंगी-दिन तड़फन
शाम बहाना-रात भूखी
लगता अब सुबहः शाम भी बिकेगी
हो सके दिन खाने -रात सोणे खातिर
सरकारी इजाजत की जरुरत पड़ेगी
समझो-दोस्तों फ़ैल रहा है सत्ता का केमिकल
होने लगी फिर हलचल
जनता ने भी दे दी चुनावी दखल
उजड़ रही गरीब की रसोई हर पल
पाँच पूरे हो गये सिर्फ नेता बदलेंगे
न बदलेगी सत्ता की ये शकल
कि गीगा की घोड़ी पे कौन चढ़ा
उतर गीगा में चढू
ध्यान रखो, पहले लगाते ये आग है
फिर मंगाते है फायर ब्रिगेड की दमकल
- तस्वीर बदलनी है तो -
आओ, मिलकर ऐसा गीत बनाएंगे
हवा संग गायेंगे -दिशा को सुनायेंगे
कृषि को उद्योग बनाएंगे
बंजर जमी उपजाऊ बनाएंगे
भ्रूण हत्या रुकवायेंगे
कन्या बचा देश बचाएंगे
जात-पात भावना भगायेंगे
धर्मनिरपेक्ष भाव जगायेंगे
शहर छोड़ गाव बसायेंगे
पगडण्डी एक नई बनायेंगे
चुनाव सारे छः महीने मे पूरा ही करायेंगे
बाकि बचे महीनो से लोकतन्त्र चलायेंगे
इलाज फ्री हो -शिक्षा फ्री हो
रोटी कपड़ा ओर मकान है सबका हक़
हर गाव हर ढाणी बिजली पहुचायेंगे
रह गया मेरा भारत अब उड़ती चिड़िया
आखिर कब इसे सोने की चिड़िया फिर बनायेंगे
खुद कहते हो सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा
कब कहेगा कोई सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ तुम्हारा
सोच से देंगे -दिमाक से देंगे
हाँ-अब एक सविंधान नया लायेंगे
संसद सुनहरी-संसद सुनहरी हो-तस्वीर नई बनायेंगे
बहुत हो गया अ खेलने वालो
सुनलो ये बात जिगरवालों की
अब मिलकर हम एक नया भारत बनायेंगे
अब मिलकर हम एक नया भारत बनायेंगे
ये सत्ता का केमिकल
चारों तरफ फैलता हलचल
चुनते है तौ य़े भी जानों
कैसा होगा हमारा कल

Friday, April 4, 2014
Topic(s) of this poem: politics
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Kalyan Singh Chouhan
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99280-43855
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