- -कहर- Poem by KALYAN SINGH CHOUHAN

- -कहर-



- -कहर-
एक बादल ने बदल दी दुनिया
बता उत्तर के नाथ
कहाँ खो गया मेरा मुन्ना
कहाँ रह गई मेरी मुनिया
ये पकृति का कैसा मन्जर
ये कहर से ऐसा खण्डहर
बाप न बचा पाया बेटे-बेटी की दुनिया
बेटा न बचा पाया बाप की मुनिया
माँ-बह गई, भाई बिछुड़ गये
गये थे अपने - अब पराये
अरे थे तो अनेक
तो कोई घर में रह गया अब एक
दर्द की जुबान से बोल रहा जमाना
उजाड़ना ही था मेरे नाथ
बता, क्यों बनाई तूने ये दुनिया
लद्दाख के बाद केदारनाथ
पर्वतों पर ही बसे है मेरे सारे नाथ
उबड़, खाब़ड़ रास्ते -तूने ही तो बनाई
दर्शन की ये पगडण्डिया
तीर्थ स्थल धर्म को अब तो बचालो
देखो कैसे उजड़ गई भक्तों की दुनिया
मत होने दो -मत होने दो-भगवन
किसी के अब ये फिर काली रात
हाँ वादा है तुमसे न छेड़ेंगे प्रकृति को
न तोड़ेंगे - न फोड़ेंगे अब पर्वतों की दुनिया
रक्षा करो-प्रभु अब तो रक्षा करो
किससे करोगे बात - जब न होगा भक्त
ओर न होगी -धरती पे ये दुनिया - - - 2
एक बादल ने ढहाया कहर ओर बदल गई ये दुनिया
कहाँ खो गया मेरा मुन्ना
कहाँ रह गई मेरी मुनिया

कवि-कल्याण
(कल्याण सिंह चौहान)
kavikalyanraj@yahoo.in
9928043855

COMMENTS OF THE POEM
Shraddha The Poetess 02 March 2014

kahin na kahin iss keher k zimmewaar hum sabhi hain..prakriti k sath khilwaad krna uske santulan ko bigaadna..ye sabhi humari hi cheshtaayein hain jiske karanvash ye sab hua.... behad achhi kavita............ meri kavitaon pr b apna dritikon spasht karein...

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