मेरी ज़िंदगी के नक्श
मैं ढूढ़ता रहा
कभी बियाबानो में
कभी घनघोर घटाओं के पीछे छिपे सितारों में
नक्श- -
जो गर थे भी तो लुप्त हो गए थे
कभी बीतते वक़्त के साथ मिट गए
कभी हालात की रवानी के साथ बह गए
और में तन्हा
एक अनन्त वीराने में
अपने आप को ढूढ़ता रहा
में
एक अहसास बन कर
जो कभी तेरी जबीं पर
एक ज़ुल्फ़ बन कर लहराता रहा
और कभी कंवल के फूल पर पड़ी ओस की मानिंद
तेरी आँखों मे अश्क बन कर चमकता रहा
मैं आज भी उस खोये हुए अहसास को
बीते वक़्त की अंधेरी गलियों में
ढूढ़ रहा हूँ।
और तुम न जाने कहाँ खो गईं
उस बवंडर के बाद
जिस ने मेरे शहर को उजाड़ दिया
मेरी उम्मीदों तमन्नाओं का वो कहकशां
तिनका तिनका बिखर गया
और में उस उजड़े वीराने में ढूंढता रहा तुम्हे।
एक एक तिनका इकठा कर के
फिर अपनी तमन्नाओं के शहर को
आबाद करने की चाह में
तेरी जुस्तजू
तेरे ििनतज़ार का अमामा पहन
भटकता रहा।
और अचानक एक दिन फिर
शबनम से भीगे गुल की तरह
तेरे आरिज़ की महक
मेरी सांसों को मदहोश कर गई।
डगमगाते लड़खड़ाते मेरे पाओं
फिर एक ज़मीन पा गये।
मेरी दबी दबी सी ख्वाहिशों से
फिर एक शहर आबाद कर लिया मैं ने।
फिर तखियूल में आबाद हुआ मेरा वह शाबिस्तान।
अब फिर बिस्तर पर पडी सिलवटों में
मेरी ज़िंदगी के नक्श उभर आते हैं
और मैं सोचता हूँ
ज़िन्दगी बे-वफाहि नहीं
बा वफ़ा भी हो सकती है।
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" ज़िन्दगी बे-वफाहि नहीं बा वफ़ा भी हो सकती" , अद्भुत, दिलकश नमूना! Reminding me John Donne!
Thanks for your appreciation.