ज़हर Poem by Tribhawan Kaul

ज़हर

ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर
जीव बनाज़हर ज़हर
जिधर देख ज़हर ज़हर
सुबह शाम यहाँ ज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर।

पानी ज़हर हवा ज़हर
सांसों साँस मिला ज़हर
पेड़ पौधे पिये ज़हर
पर्यावरण जिए ज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर।

खाद्य ज़हरपथ्य ज़हर
कंद - मूल कथ्य ज़हर
सहिषुणता कर्म ज़हर
कलयुग में धर्म ज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर।

सोच ज़हर नज़र ज़हर
कामी का क़हर ज़हर
झूठ भाये सच ज़हर
घूमर संगनच ज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर।

बोलीज़हर भाव ज़हर
वोटों का प्रभाव ज़हर
देशहित संवाद ज़हर
जातियों का वाद ज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर।

शिव कौन जो पिये ज़हर?
करे मंथन हरे ज़हर
इंसानियत! मिटे ज़हर
इक भारती, कटेज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर
ज़हर ज़हर ज़हर ज़हर।
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल

Wednesday, December 6, 2017
Topic(s) of this poem: contemporary
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
The way things are shaping up so far as the environment and the mentality of human beings are concerned, is definitely a matter of concern particularly in India.
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 23 October 2018

बहुत खूब! आज कोई नहीं है जो इस ज़हर को पिए, कई गंभीर सवाल जुड़े हुए हैं आज के पर्यावण और इसके इर्द गिर्द हो रही समस्याओं से, मज़ा आगया 10++

1 0 Reply
Tribhawan Kaul 24 October 2018

हार्दिक धन्यवाद आपका। सप्रेम।

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Tribhawan Kaul

Tribhawan Kaul

Srinagar (J & K) India
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